प्राकृतिक संसाधनों का

संतुलित और दक्षतापूर्ण दोहन

प्रत्येक देश अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के लिए प्राकृतिक और आर्थिक संसाधनों पर काफी हद तक निर्भर करता है। इन संसाधनों का अनुकूल माहौल में अधिकारिक दोहन करके ही अर्थव्यवस्था को तेज गति दी जा सकती है। अगर कोई देश अर्थव्यवस्था से जुड़े संसाधनों का अल्पदोहन करता है तो उस देश के अर्थिक विकास की रफ्तार तुलनात्मक रूप से कम होती है। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि विकास की गति को तेज करने के लिए मौजूदा संसाधनों का उपयोग अधिक से अधिक करे जो अनुकूल प्रभाव छोड़ते हों। लेकिन आर्थिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन से आर्थिक संकट की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है। अगर ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों का अत्यधिक दोहन किया जाए तो कुछ ही समय में इसका भंडार समाप्त हो जाएगा। इसके खत्म होने से उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। भूजल के अत्यधिक दोहन से भूजल स्तर में गिरावट आई है। अगर जल्द ही जलसंचय और संरक्षण के प्रयास नहीं किए गए तो दुनिया भीषण जल संकट की चपेट में आ जाएगा।

प्राकृतिक संसाधनों काप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जलसंचय और संरक्षण को लेकर काफी गंभीर हैं और इस मुहिम की शुरूआत भी कर चुके हैं। जल शक्ति मंत्रालय का गठन होना इस बात का सबूत है। इलेक्ट्राॅनिक उपकरणों के अत्यधिक दोहन से उनके जहरीले कचरे में शामिल कैडमियम व पारा आदि मनुष्य और जीव जंतु के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। उर्वरकों का अत्यधिक प्रयोग होने से खेत के बंजर होने का खतरा रहता है। शहरीकरण और तेजी से बढ़ते उद्योग कृषि योग्य भूमि और जंगल पर कब्जा करते जा रहे हैं। इससे खाद्यान्न की कमी होगी जिससे महंगाई बढ़ेगी। बैंकों, वित्तीय संस्थानों और अन्य कंपनियों के सामने ऋण और तरलता का जोखिम आजकल चर्चा का विषय है। कई कंपनियों ने वित्तीय संकट की वजह से दम तोड़ दिया है। सवाल उठता है कि किया क्या जाए। अल्पदोहन से विकास की रफ्तार घटती है तो अत्यधिक दोहन से आर्थिक संकट उत्पन्न होने का खतरा रहता है। हालांकि कोई भी देश यह नहीं चाहता है कि वह संकट में फंसे। संसाधनों का संतुलित और दक्षतापूर्ण दोहन के लिए प्रयास कर सकते हैं। निरंतर बने हुए वैश्विक असंतुलन वर्तमान संकट का प्रमुख कारण है।