फर्क तो पड़ने ही लग गया है। लोग एक लाईन सफेदा लगा कर सस्ता माल बेचे जा रहे है। हमारे माल को लोग मंहगा बता रहे हैं। दिक्कत यह है कि माल तो यमुनानगर का ही कहलाएगा। लोग यह तो बताते नहीं कि लकड़ी कौन सी यूज कर रहे हैं। यही तो चक्कर है। सांपला या जयपुर का तो ठप्पा लगा हुआ है लेकिन यमुनानगर को तो लोग बढ़िया माल की केटेगेरी में गिनते हैं।

850-900 की लकड़ ले रहे हैं। लकड़ी की गोलाई भी कम हो गयी। अब तो 15$ का माल बिकने लग गया। अभी पिछे पोपुलर के रेट थोड़े कम हुए थे और बाजार में डिमांड भी बनी तो हमें रेट भी मिलने लग गये थे। अब जो तेजी आयी तो यहां अरडु लगा कर लोगों ने ब्रेक लगा दिया।

अभी भी यही बात है कि अगर अरडु का माल कहकर फर्नीचर ग्रेड में बेचते हैं फिर तो कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन अच्छे माल में चोरी से न लगाया जाए। तब ही यमुनानगर उद्योग को तबाही से बचाया जा सकता है।