विरल ने उधारी पर सरकार को चेताया

सरकार को एक स्वतंत्र ‘राजकोषीय परिशद’ की स्थापना के लिए 14वीं वित्त आयोग और एफआरबीएम समीक्षा समिति (2016-17) की सिफारिशों को अपनाना चाहिए। भूमि, श्रम और कृषि सुधारों को लागू करने का सुझाव

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने आखिकार इस केंद्रीय बैंक को अलविदा कह दिया।

गत दिनों डिप्टी गवर्नर ने आईआईटी, अहमदाबाद और आईआईटी बंबई में दिए गए भाषणों में कहा कि सरकार के बड़ी मात्रा में कर्ज लेने से निजी कंपनियां उससे वंचित हो रही हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि इसका उत्पादक कार्यों में इस्तेमाल हो रहा है।

सरकार को राजकोषीय जिम्मेदारी एवं बजटीय प्रबंधन अधिनियम जिम्मेदारी एवं बजटीय प्रबंधन अधिनियम (एफआरबीएम) द्वारा तय सीमा पर कायम रहना जरूरी है। एफआरबीएम में कहा गया है कि राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3 फीसदी के दायरे में रखा जाना चाहिए। आचार्य ने कहा कि लक्ष्यों को भविष्य के लिए टालने की नीति पर अंकुश लगाया जाना चाहिए।

आचार्य ने अपने भाषण में कहा, ‘इस समय भारत में पंूजीगत खर्च में सरकार का हिस्सा महज 14 फिसदी है।’ उन्होंने कहा, ‘सरकारी व्यय को तर्कसंगत बनाने के लिए गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। जो सब्सिडी और कार्यक्रम लंबी अवधि की वृद्धि में मददगार नहीं हैं, उन पर खर्च घटाया जाना चाहिए और शिक्षा, स्वास्थ्य एवं बुनियादी ढांचे जैसे जनहित के कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।’

सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में अपने शेयरों का विनिवेश करके बाजार में अपनी उधारी कम कर सकती है। उन्होंने कहा, ’अगर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को चलाने में निजी क्षेत्र के निवेशकों की प्रभावी भूमिका होगी तो उनमें कुशलता आएगी।’ इससे सरकार की बाजार से उधार लेने की जरूरत भी कम हो जाएगी और निजी निवेश में कमी पर भी अंकुश लगेगा।

उन्होंने कहा, ‘इससे उत्पादकता में इजाफा होगा और शुद्व सरकारी लाभांश में बढ़ोतरी होगी। इस कदम से ज्यादा सरकारी उधारी के नतीजों की तुलना में बेहतर संतुलित बजट संभव होगा।’

आचार्य ने इस बात का समर्थन किया कि महत्त्वपूर्ण ढांचागत सुधारों के प्र्रभावी क्रियान्वयन पर लगातार जोर दिया जाना चाहिए। इन ढांचागत सुधारों में ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) के तहत फंसे ऋणों का एक निश्चित समयावधि मंे समाधान और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के जरिये राष्ट्रीय बाजारों का सृजन शामिल हैं। आचार्य ने कहा, ‘अति आवश्यक भूमि, श्रम और कृषि सुधारों को अमलीजामा पहनाया जाना चाहिए। ये सभी निजी क्षेत्र की वृद्धि में मददगार बन सकते हैं।’

आचार्य को अब भारत में अपने अक्टूबर, 2018 के बयान के लिए जाना जाता है। उन्होंने उस समय सरकार को केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता के साथ खेलने के नतीजों को लेकर चेताया था। उनके आरबीआई से जाने से केंद्रीय बैंक में ऐसा खाली स्थान पैदा होगा, जिसकी भरपाई करना आसान नहीं होगा। विशेष रूप से ऐसे समय जब केंद्रीय बैंक अपना आरक्षित भंडार सरकार को हस्तांतरित करने जा रहा है। मुखर माने जाने वाले डिप्टी गवर्नर आचार्य ने उस समय इसे ‘केंद्रीय बैंक की बैलेंस शीट पर छापेमारी’ करार दिया था। आचार्य का आरबीआई में तीन साल का कार्यकाल 23 जनवरी, 2020 को समाप्त होना था, लेकिन उन्होंने सात महीने पहले ही इसे अलविदा करने का फैसला ले लिया।

ऐसी सब्सिडी और कार्यक्रमों पर खर्च घटाना चाहिए, जो लंबी अवधि की वृद्धि में मददगार नहीं हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य एवं बुनियादी ढांचे जैसे जनहित के कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।